भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रणनीतिक संबंध एक बार फिर वैश्विक मंच पर चर्चा का केंद्र बन गए हैं। हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की रूस यात्रा और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात ने न केवल कूटनीतिक हलकों में हलचल मचाई है, बल्कि यह संकेत भी दिया है कि भारत-रूस रिश्ते एक नई दिशा की ओर अग्रसर हैं। अमेरिका के बढ़ते दबाव और वैश्विक व्यापारिक असंतुलन के बीच यह यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। आइए विस्तार से समझते हैं कि इस दौरे के क्या निहितार्थ हैं, और भारत-रूस संबंध किस दिशा में बढ़ रहे हैं।
भारत-रूस संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और रूस (पूर्व में सोवियत संघ) के बीच संबंध 1950 के दशक से ही मजबूत रहे हैं। शीत युद्ध के समय से ही रूस भारत का विश्वसनीय रणनीतिक सहयोगी रहा है। रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष, शिक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में दोनों देशों ने मिलकर अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। 1971 की भारत-पाक युद्ध में सोवियत संघ की भूमिका को आज भी भारत में कृतज्ञता से याद किया जाता है।
डोभाल की यात्रा का समय और महत्त्व
अजीत डोभाल की यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक मंच पर कई उथल-पुथल चल रही हैं। अमेरिका ने हाल ही में रूस से तेल खरीदने पर भारत पर टैरिफ (शुल्क) बढ़ा दिया है, जिससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव देखा गया। ऐसे में डोभाल का मास्को दौरा यह स्पष्ट करता है कि भारत अपनी विदेश नीति में “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति पर कायम है।
मुख्य उद्देश्य:
- राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे की तैयारी
- रक्षा और ऊर्जा समझौतों को मजबूत करना
- क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक भू-राजनीति पर विचार-विमर्श
- अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बीच संतुलन बनाना
राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात: एक प्रतीकात्मक संकेत
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अजीत डोभाल की मुलाकात को प्रतीकात्मक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दोनों नेताओं की गर्मजोशी और सहजता यह संकेत देती है कि भारत-रूस संबंधों में विश्वास की नींव आज भी मजबूत है।
पुतिन का यह व्यवहार वैश्विक मीडिया और कूटनीतिक विश्लेषकों के लिए एक संदेश है कि रूस भारत को एक भरोसेमंद साझेदार मानता है। साथ ही, डोभाल की इस यात्रा ने यह स्पष्ट किया कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से मजबूत करना चाहता है, विशेषकर ऐसे समय में जब वैश्विक राजनीति में अस्थिरता है।
रक्षा सहयोग: भारत-रूस का मजबूत स्तंभ
भारत की रक्षा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा अब भी रूस से ही पूरा होता है।
महत्वपूर्ण रक्षा सौदे:
- S-400 मिसाइल प्रणाली: भारत ने रूस से अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा है।
- सुखोई और मिग-29 जैसे लड़ाकू विमान: भारतीय वायुसेना की रीढ़ माने जाते हैं।
- ब्राह्मोस मिसाइल: भारत-रूस संयुक्त परियोजना है।
डोभाल की यात्रा में यह संकेत मिला है कि भविष्य में दोनों देश और भी कई रक्षा प्रोजेक्ट्स पर मिलकर काम करेंगे। यह भारत की “मेक इन इंडिया” पहल को भी बल देगा।
ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की संभावनाएं
रूस प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर देश है, और भारत ऊर्जा का एक बड़ा उपभोक्ता। ऐसे में दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग समय की मांग है।
प्रमुख पहलें:
- रूस से कच्चे तेल और गैस की खरीद
- दीर्घकालिक आपूर्ति अनुबंधों पर बातचीत
- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में सहयोग (जैसे कुडनकुलम परियोजना)
हालांकि, अमेरिका और यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों के चलते यह सहयोग चुनौतियों से भरा है, लेकिन भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने के लिए प्रतिबद्ध है।
भूराजनैतिक संतुलन: भारत की कूटनीति की परीक्षा
भारत आज एक ऐसी स्थिति में है जहाँ उसे अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ जैसे वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। डोभाल की यह यात्रा यह दिखाती है कि भारत न तो किसी एक ध्रुव की ओर झुका है और न ही दबाव में नीतियां बना रहा है।
भारत की रणनीति:
- “मल्टी-वेक्टर फॉरेन पॉलिसी” अपनाना
- अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना
- रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका और यूरोपीय देशों से भी संबंधों में संतुलन रखना
चीन और यूक्रेन संघर्ष: भारत-रूस दृष्टिकोण में सामंजस्य
रूस और चीन के बीच घनिष्ठ संबंध भारत के लिए चिंता का विषय हैं, वहीं यूक्रेन युद्ध को लेकर भी भारत ने एक संतुलित रुख अपनाया है। डोभाल की यह यात्रा ऐसे समय हुई है जब रूस पश्चिम से अलग-थलग पड़ता जा रहा है और भारत की भूमिका एक “ब्रिज” की तरह उभर रही है।
भारत ने अब तक यूक्रेन संघर्ष में किसी पक्ष का सीधा समर्थन नहीं किया है और शांति वार्ता पर जोर दिया है। रूस के साथ बातचीत कर भारत यह संदेश देना चाहता है कि वह वैश्विक स्थिरता में सकारात्मक भूमिका निभाना चाहता है।
सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग: स oft पॉवर की भूमिका
भारत और रूस के संबंध केवल रणनीतिक और आर्थिक ही नहीं, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्र में भी मजबूत हैं।
- रूस में हिंदी और योग को लेकर रुचि
- भारतीय छात्रों की बड़ी संख्या रूस के मेडिकल कॉलेजों में
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रम
डोभाल की यात्रा ने इन सौम्य क्षेत्रों में सहयोग को और बढ़ावा देने की संभावना को भी जन्म दिया है।
निष्कर्ष: भविष्य की दिशा
अजीत डोभाल की रूस यात्रा भारत-रूस संबंधों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह दौरा न केवल रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करता है, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और वैश्विक मंच पर बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बीच भारत ने संतुलन साधते हुए राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा है। आने वाले समय में जब पुतिन भारत दौरे पर आएंगे, तब यह स्पष्ट हो जाएगा कि दोनों देश अपने संबंधों को किस नई ऊँचाई तक ले जाने को तैयार हैं।