भारतीय क्रिकेट का नाम आते ही तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह का ज़िक्र होना लाज़मी है। अपनी धारदार गेंदबाजी, सटीक यॉर्कर और अनोखे एक्शन के चलते बुमराह ने दुनियाभर में नाम कमाया है और वे आज के दौर के सबसे खतरनाक गेंदबाजों में गिने जाते हैं। लेकिन बीते कुछ सालों में उनकी फिटनेस और वर्कलोड को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अकसर चोटों से जूझने, सर्जरी और लंबे ब्रेक लेने के कारण वे कई अहम मुकाबलों से दूर रहे हैं, जिससे टीम मैनेजमेंट को रणनीति बदलनी पड़ी है। कई बार उनके बाहर रहने से टीम संयोजन बिगड़ा और कप्तान को नए गेंदबाजों पर भरोसा करना पड़ा। हाल ही में पूर्व क्रिकेटर संजय मांजरेकर ने बुमराह के चयन और उनकी फिटनेस को लेकर बड़ी टिप्पणी की है, जिसने फिर से इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया और क्रिकेट प्रेमियों के बीच बहस छेड़ दी कि क्या भारत को बुमराह के बिना भी संतुलन खोजने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।
बुमराह की फिटनेस पर बढ़ते सवाल
भारतीय क्रिकेट टीम के लिए जसप्रीत बुमराह एक मैच-विनर गेंदबाज हैं। लेकिन चोटों के चलते उनकी उपलब्धता हमेशा सवालों के घेरे में रहती है। इंग्लैंड के खिलाफ पांच मैचों की टेस्ट सीरीज़ में उन्होंने केवल तीन मुकाबलों में हिस्सा लिया। जिन दो मैचों में वे नहीं खेले, भारत ने जीत हासिल की। इस तथ्य को आधार बनाकर मांजरेकर ने कहा कि चयनकर्ताओं को केवल बड़े नाम देखकर टीम नहीं बनानी चाहिए, बल्कि ऐसे खिलाड़ियों को चुनना चाहिए जो लगातार उपलब्ध और फिट हों।
पूर्व खिलाड़ियों की राय और चेतावनी
संजय मांजरेकर ने साफ कहा कि अगर बुमराह लगातार मैच खेलने में सक्षम नहीं हैं तो उन्हें “पहली पसंद” गेंदबाजों की सूची से बाहर रखना चाहिए। उनका मानना है कि टेस्ट क्रिकेट में फिटनेस सबसे अहम होती है और ऐसे खिलाड़ियों को तरजीह देनी चाहिए जो लंबे समय तक लगातार खेल सकें। मांजरेकर ने यह भी कहा कि भारतीय टीम मैनेजमेंट को बुमराह को बचाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें खुद अपनी फिटनेस और करियर को संभालना होगा।
इंग्लैंड सीरीज में बुमराह का खेल कैसा रहा?
इंग्लैंड के खिलाफ बुमराह ने तीन टेस्ट मैचों में 14 विकेट झटके, जिनमें उनकी गेंदबाजी की धार साफ दिखाई दी। हालांकि टीम इंडिया उन मैचों में जीत हासिल नहीं कर पाई जिनमें बुमराह ने खेला, जिससे यह चर्चा और तेज हो गई कि क्या उनकी उपस्थिति टीम के संतुलन पर असर डालती है या यह सिर्फ संयोग है। इसके उलट, जिन मैचों में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया, भारत विजयी रहा और इससे आलोचकों को यह कहने का मौका मिल गया कि टीम बुमराह पर निर्भर हुए बिना भी जीत सकती है। यह आंकड़ा उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन पर सवाल नहीं खड़ा करता, क्योंकि 14 विकेट अपने आप में बड़ा योगदान है, लेकिन उनकी नियमित उपलब्धता पर गंभीर बहस जरूर पैदा करता है। यह भी संकेत देता है कि भारत को भविष्य में बुमराह जैसे खिलाड़ियों के लिए बैकअप विकल्प हमेशा तैयार रखने होंगे।
वर्कलोड मैनेजमेंट इतना जरूरी क्यों है?
क्रिकेट, खासकर टेस्ट फॉर्मेट, शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर खिलाड़ियों से बेहद ऊर्जा मांगता है। तेज गेंदबाजों के लिए यह और भी चुनौतीपूर्ण होता है। लगातार गेंदबाजी करने से चोट का खतरा बढ़ जाता है। यही वजह है कि बुमराह जैसे गेंदबाजों के लिए वर्कलोड मैनेजमेंट एक बड़ा मुद्दा बन गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वर्कलोड मैनेजमेंट के नाम पर उन्हें अहम मैचों से दूर रखना टीम के लिए सही रणनीति है?
टीम चुनने में सबसे बड़ी मुश्किल
भारतीय टीम के चयनकर्ताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि बड़े नाम और फिट खिलाड़ियों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। बुमराह जैसे खिलाड़ी किसी भी दिन मैच का पासा पलट सकते हैं, लेकिन अगर वे लगातार चोटिल रहते हैं तो टीम को मजबूरी में बैकअप खिलाड़ियों पर भरोसा करना पड़ता है। इस स्थिति में चयनकर्ताओं को भावनात्मक फैसले लेने के बजाय व्यावहारिक सोच अपनानी होगी। टीम का संतुलन तब ही मजबूत रह सकता है जब हर खिलाड़ी फिट और उपलब्ध हो। लगातार चोटिल खिलाड़ियों को प्राथमिकता देने से टीम के कॉम्बिनेशन पर असर पड़ता है और बेंच पर बैठे खिलाड़ियों का मनोबल भी प्रभावित हो सकता है। यही कारण है कि चयनकर्ताओं को केवल नाम नहीं बल्कि खिलाड़ियों की फिटनेस रिपोर्ट, हालिया प्रदर्शन और लंबे समय तक खेलने की क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए। तभी टीम की स्थिरता और निरंतरता बनी रह सकती है।
खिलाड़ियों को खुद क्या करना चाहिए?
सिर्फ बोर्ड और चयनकर्ताओं पर ही नहीं, बल्कि खिलाड़ियों पर भी अपनी फिटनेस बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। क्रिकेट के इस आधुनिक दौर में जब मैचों का शेड्यूल बेहद व्यस्त और लगातार होता है, तब खिलाड़ियों को अपने शरीर की क्षमता को पहचानना और उसी के हिसाब से ट्रेनिंग व आराम की योजना बनाना जरूरी हो जाता है। बुमराह जैसे दिग्गज को भी यह समझना होगा कि फिटनेस केवल चोट से बचने का उपाय नहीं है, बल्कि लंबे करियर की सबसे बड़ी कुंजी है। उन्हें न केवल जिम और नेट्स पर मेहनत करनी होगी बल्कि सही डाइट, नींद और रिकवरी पर भी ध्यान देना होगा। आधुनिक क्रिकेट में कई तेज गेंदबाजों ने कठिन फैसले लेकर अपने करियर को लंबा किया है, जैसे सीमित ओवरों में अपनी भागीदारी घटाना या टेस्ट पर अधिक ध्यान देना। बुमराह को भी इसी राह पर चलना पड़ सकता है और अपने खेल के प्रारूप व शेड्यूल को संतुलित करना पड़ सकता है ताकि वे टीम इंडिया के लिए लंबे समय तक लगातार योगदान दे सकें।
अब आगे क्या होगा?
एशिया कप 2025 की शुरुआत 9 सितंबर से होने जा रही है। ऐसे में क्रिकेट फैंस और विशेषज्ञों की नजरें इस बात पर होंगी कि क्या बुमराह पूरी तरह फिट होकर टीम का हिस्सा बनते हैं या नहीं। भारत को अगर आने वाले बड़े टूर्नामेंट्स में अच्छा प्रदर्शन करना है तो बुमराह जैसे खिलाड़ियों की भूमिका बेहद अहम होगी। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उनकी फिटनेस और उपलब्धता पर स्पष्ट रणनीति बनाई जाए।
निष्कर्ष
जसप्रीत बुमराह भारतीय क्रिकेट का अनमोल रत्न हैं, लेकिन उनकी बार-बार की चोटें और सीमित उपलब्धता टीम के लिए चिंता का कारण बन रही हैं। पूर्व खिलाड़ियों की राय और आंकड़े यह संकेत दे रहे हैं कि केवल नाम के आधार पर चयन करना टीम के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। भारत को अब फिटनेस, उपलब्धता और निरंतरता को ध्यान में रखते हुए संतुलित फैसले लेने होंगे।