भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में व्यापारिक तनाव देखने को मिला है। अमेरिकी सरकार ने भारत से आयात होने वाले कुछ उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इसका कारण भारत द्वारा रूस से तेल की बड़ी मात्रा में खरीददारी बताया जा रहा है। इस निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार दोनों ही क्षेत्रों में हलचल मचा दी है। इसी बीच चीन ने भारत के समर्थन में खुलकर सामने आकर अमेरिका को सख्त संदेश दिया है। चीन का कहना है कि चुप्पी केवल धमकाने वालों को ताकत देती है और वह भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा।
अमेरिका का 50% टैरिफ निर्णय
अमेरिका ने हाल ही में भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह टैरिफ कुल 50% है, जिसमें से 25% भारत के निर्यात उत्पादों पर सामान्य दर से और 25% रूस से तेल खरीद को लेकर अतिरिक्त दंडस्वरूप जोड़ा गया है। अमेरिका का आरोप है कि भारत रूसी कच्चा तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस का समर्थन कर रहा है। इस फैसले को 27 अगस्त से लागू किया जाना है।
इस कदम से भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों में खटास आने की संभावना है। भारतीय निर्यातकों को इसका सीधा असर झेलना पड़ सकता है, खासकर वे कंपनियां जो अमेरिका को बड़ी मात्रा में सामान भेजती हैं।
चीन की प्रतिक्रिया: भारत के साथ खड़ा रहने का वादा
भारत में चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने अमेरिका के इस फैसले की तीखी आलोचना की है। उन्होंने अमेरिका को “धौंसिया” करार देते हुए कहा कि वह लंबे समय से फ्री ट्रेड का फायदा उठाता आ रहा है, लेकिन अब टैरिफ को सौदेबाजी का हथियार बना चुका है।
चीन ने साफ कहा कि वह भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा। चीन का मानना है कि ऐसे मामलों में चुप रहना धमकाने वालों को और प्रोत्साहित करता है। इसलिए वह न केवल विरोध दर्ज कराएगा, बल्कि भारत के साथ सहयोग को और गहरा करेगा।
भारत-चीन आर्थिक साझेदारी की संभावनाएँ
राजदूत फेइहोंग ने इस मौके पर भारत-चीन आर्थिक रिश्तों को भी और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यदि दोनों देश अपने बाजार एक-दूसरे के लिए खोलें तो न केवल द्विपक्षीय व्यापार का आकार कई गुना बढ़ेगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी बड़ा और सकारात्मक असर डाला जा सकेगा।
उनके अनुसार इस तरह का सहयोग रोजगार के नए अवसर, तकनीकी आदान-प्रदान और निवेश की संभावनाओं को भी जन्म देगा, जिससे दोनों देशों की विकास गति और तेज हो सकती है।
- भारत की ताकत: आईटी, सॉफ्टवेयर, बायोमेडिसिन
- चीन की ताकत: इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, विनिर्माण
फेइहोंग का कहना है कि यदि दोनों देश मिलकर काम करें तो एक-दूसरे की कमजोरियों को ताकत में बदला जा सकता है। उन्होंने भारतीय कंपनियों को चीन में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया और उम्मीद जताई कि भारत भी चीनी कंपनियों के लिए अनुकूल माहौल बनाएगा।
अमेरिका-भारत संबंधों पर असर
अमेरिका का यह टैरिफ कदम भारत के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। इससे न केवल भारतीय निर्यात प्रभावित होंगे, बल्कि भारत-अमेरिका के रणनीतिक संबंधों में भी तनाव पैदा हो सकता है। दोनों देश लंबे समय से रक्षा, तकनीक और व्यापार में साझेदार रहे हैं। लेकिन यह फैसला रिश्तों में खटास ला सकता है।
वहीं दूसरी ओर, चीन के खुलकर भारत के पक्ष में आने से एशिया की राजनीति में नए समीकरण बनते नजर आ रहे हैं। यह अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि भारत और चीन मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डाल सकते हैं।
वैश्विक व्यापार पर संभावित प्रभाव
यदि भारत और चीन एक-दूसरे के बाजार खोलते हैं, तो वैश्विक व्यापारिक व्यवस्था में नए अवसर पैदा होंगे। इससे अमेरिका और पश्चिमी देशों की पकड़ ढीली हो सकती है। अमेरिका की रणनीति रही है कि वह टैरिफ और प्रतिबंधों के जरिए अपने हित साधे, लेकिन भारत-चीन की नजदीकी इस रणनीति को चुनौती दे सकती है।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ केवल एक व्यापारिक निर्णय नहीं है, बल्कि इसके पीछे भू-राजनीतिक सोच भी छिपी है। लेकिन चीन का भारत के पक्ष में आना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा संकेत है। यह न केवल एशिया की शक्ति संतुलन को बदल सकता है, बल्कि वैश्विक व्यापार और राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है।
आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत इस स्थिति से कैसे निपटता है—क्या वह अमेरिका से बातचीत कर कोई समाधान ढूंढेगा, या फिर चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ नए गठजोड़ बनाकर आगे बढ़ेगा।