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ब्लैक होल रिसर्च: IIT गुवाहाटी ने सुलझाई रहस्यमयी पहेली – जानें क्यों है यह खोज इतनी खास

On: August 20, 2025 6:52 PM
Black hole with glowing accretion disk in deep space
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अंतरिक्ष हमेशा से ही इंसान के लिए रहस्यमयी और आकर्षण का विषय रहा है। तारे, गैलेक्सियाँ और ब्लैक होल जैसी खगोलीय घटनाएँ हमारे ज्ञान की सीमाओं को लगातार चुनौती देती रही हैं। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने इसरो और इजराइल के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ब्लैक होल पर एक अहम खोज की है। यह रिसर्च न केवल अंतरिक्ष विज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने में मदद करेगी, बल्कि भविष्य में छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए भी नई संभावनाओं का रास्ता खोलेगी।

ब्लैक होल क्या होता है?

ब्लैक होल अंतरिक्ष का वह क्षेत्र होता है, जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि वहाँ से रोशनी तक बाहर नहीं निकल पाती। इसे हम ब्रह्मांड का सबसे रहस्यमय पिंड कह सकते हैं। ब्लैक होल तब बनते हैं जब बहुत बड़े आकार का तारा अपने जीवन के अंत में ध्वस्त होकर बेहद घना और शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण वाला क्षेत्र बना लेता है। यह क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि उसके पास आने वाली हर चीज़ उसकी ओर खिंच जाती है।

IIT गुवाहाटी की खोज क्यों खास है?

IIT गुवाहाटी की टीम ने ब्लैक होल से आने वाली रोशनी के उतार-चढ़ाव का अध्ययन किया। इस रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने देखा कि ब्लैक होल से निकलने वाली एक्स-रे कभी तेज होती है और कभी धीमी। यह रोशनी इतनी तेज़ी से झिलमिलाती है कि एक सेकंड में लगभग 70 बार चमकती है। यह पहली बार हुआ है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने इस तरह के पैटर्न को स्पष्ट रूप से देखा और समझा।

रिसर्च में इस्तेमाल हुआ डेटा

इस रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों ने भारत की अपनी स्पेस ऑब्जर्वेटरी ‘एस्ट्रोसैट’ के डेटा का इस्तेमाल किया। यह उपग्रह 2015 में लॉन्च किया गया था और तब से अंतरिक्ष की गुत्थियों को सुलझाने में मदद कर रहा है। एस्ट्रोसैट के डेटा ने वैज्ञानिकों को ब्लैक होल से आने वाले सिग्नल्स को विस्तार से समझने का अवसर दिया।

किस ब्लैक होल पर अध्ययन हुआ

यह रिसर्च जिस ब्लैक होल पर की गई उसका नाम GRS 1915+105 है। यह ब्लैक होल हमारी पृथ्वी से लगभग 28,000 प्रकाश वर्ष दूर है। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस ब्लैक होल से आने वाली रोशनी कई सौ सेकंड तक घटती-बढ़ती रहती है।

झिलमिलाहट का रहस्य

रिसर्च के अनुसार, जब ब्लैक होल की रोशनी तेज होती है तो उसके चारों ओर का गर्म इलाका, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘कोरोना’ कहते हैं, सिकुड़कर और ज्यादा गर्म हो जाता है। वहीं जब रोशनी धीमी होती है तो यह कोरोना फैलकर ठंडा हो जाता है और झिलमिलाहट गायब हो जाती है। इससे यह साबित होता है कि ब्लैक होल के आसपास का कोरोना स्थिर नहीं है, बल्कि यह लगातार आकार और ऊर्जा बदलता रहता है।

शोध का वैज्ञानिक महत्व

इस खोज का सबसे बड़ा महत्व यह है कि अब वैज्ञानिक ब्लैक होल के आसपास की परिस्थितियों को और गहराई से समझ पाएंगे। ब्लैक होल किस तरह से ऊर्जा छोड़ते हैं, उनका प्रभाव अंतरिक्ष के अन्य हिस्सों पर कैसे पड़ता है, और वे समय के साथ कैसे बड़े होते जाते हैं—इन सभी सवालों के जवाब इस रिसर्च से मिल सकते हैं।

छात्रों और शोधकर्ताओं को फायदा

इस तरह की रिसर्च का सबसे बड़ा लाभ विज्ञान पढ़ रहे छात्रों और शोधकर्ताओं को मिलेगा। वे ब्लैक होल की गतिविधियों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। इससे भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई और भी रोचक और शोध-आधारित हो जाएगी। भारतीय छात्रों को यह भी भरोसा मिलेगा कि देश में ही उच्चस्तरीय शोध किए जा सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

इस रिसर्च की खासियत यह भी है कि इसमें भारत के वैज्ञानिकों ने इजराइल के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर काम किया। इससे यह साबित होता है कि विज्ञान की दुनिया में सीमाएँ मायने नहीं रखतीं। अंतरिक्ष की गुत्थियों को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बेहद जरूरी है। इस तरह का सहयोग न केवल नए दृष्टिकोण और अनुभव लेकर आता है, बल्कि इससे शोध की गुणवत्ता और गहराई भी बढ़ती है। जब अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक अपनी तकनीक, डेटा और विचार साझा करते हैं तो जटिल समस्याओं का समाधान जल्दी निकल सकता है। भविष्य में इस तरह के वैश्विक सहयोग से अंतरिक्ष विज्ञान में कई और बड़े बदलाव और खोजें संभव होंगी।

भविष्य की संभावनाएँ

इस खोज ने यह संकेत दिया है कि आने वाले समय में ब्लैक होल पर और गहन अध्ययन किए जा सकते हैं। वैज्ञानिक अब ज्यादा उन्नत उपकरणों और तकनीकों का इस्तेमाल करके और भी गहरी जानकारी जुटा पाएंगे। भविष्य में इस दिशा में काम करते हुए हमें ब्लैक होल की संरचना, उसमें होने वाली ऊर्जा की प्रकृति और उसके आस-पास के वातावरण पर पड़ने वाले असर के बारे में और सटीक जानकारी मिल सकती है।

इसके अलावा, यह संभावना भी है कि वैज्ञानिक ब्लैक होल से निकलने वाली अत्यधिक ऊर्जा को नियंत्रित या उपयोग करने की तकनीक विकसित कर लें, जो ऊर्जा संकट से जूझती दुनिया के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती है।

निष्कर्ष

IIT गुवाहाटी की यह खोज भारत के वैज्ञानिक समुदाय के लिए गर्व का विषय है। इससे न केवल ब्लैक होल को समझने की दिशा में नई राह खुली है, बल्कि यह छात्रों और भविष्य के वैज्ञानिकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है। यह रिसर्च दिखाती है कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है और आने वाले समय में और भी बड़ी खोजें संभव हैं।

Priyanka Singh

मैं प्रियंका सिंह, ‘संदेश दुनिया’ के साथ जुड़ी एक समर्पित लेखिका और न्यूज़ ऑथर हूँ। ताज़ा खबरों से लेकर गहराई वाली रिपोर्ट तक, मेरा उद्देश्य है आपको हर महत्वपूर्ण जानकारी सही, सरल और भरोसेमंद तरीके से पहुँचाना। ‘संदेश दुनिया’ के जरिए मैं हर ख़बर को ईमानदारी और ज़िम्मेदारी के साथ आपके सामने लाने की कोशिश करती हूँ।

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