भारत आज वैश्विक पटल पर तेजी से उभर रही ताकत के रूप में अपनी मजबूत पहचान बना रहा है। बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों और भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच भारत ने यह साबित कर दिया है कि आत्मनिर्भरता, नवाचार और रणनीतिक दूरदृष्टि के दम पर कोई भी राष्ट्र विश्व की प्रमुख शक्तियों में शामिल हो सकता है। हाल के वर्षों में भारत ने रक्षा, तकनीक, निर्यात और कूटनीति के क्षेत्र में जो उल्लेखनीय प्रगति की है, वह न केवल देश के लिए गर्व का विषय है बल्कि दुनिया के लिए भी प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करती है। इसके साथ ही, भारत की बढ़ती आर्थिक क्षमता, वैश्विक साझेदारियों और अंतरिक्ष तथा ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों में नेतृत्व ने इसे एक जिम्मेदार और प्रभावशाली शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है।
आत्मनिर्भर भारत का सपना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू हुई ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल ने रक्षा और तकनीकी क्षेत्र में अभूतपूर्व और क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। पहले जिन अत्याधुनिक उपकरणों, हथियार प्रणालियों और जटिल तकनीकों के लिए भारत को पूरी तरह विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, आज वे न केवल देश में ही डिजाइन और विकसित हो रहे हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर भारतीय उद्योगों और वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोग से निर्मित भी किए जा रहे हैं। इस बदलाव ने न केवल हमारी विदेशी निर्भरता घटाई है, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर एक मजबूत, आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव
कुछ साल पहले तक भारत के रक्षा उपकरणों का अधिकांश हिस्सा आयात पर निर्भर था। हवाई जहाज़, हथियार, प्लेटफ़ॉर्म और अन्य रक्षा सामग्री हमें विदेशों से खरीदनी पड़ती थी, जिससे न केवल भारी विदेशी मुद्रा खर्च होती थी, बल्कि रणनीतिक मामलों में भी हमें बाहरी देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। भारत में न केवल हथियार और रक्षा तकनीक विकसित की जा रही है, बल्कि अत्याधुनिक शोध, उत्पादन इकाइयों का विस्तार और निजी क्षेत्र की भागीदारी के जरिए आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि इन उपकरणों का निर्यात भी रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ा है, जिससे भारत वैश्विक रक्षा बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है।
निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि
2014 में भारत का रक्षा निर्यात लगभग 600 करोड़ रुपये था, जो उस समय के वैश्विक रक्षा बाजार में भारत की सीमित हिस्सेदारी को दर्शाता था। आज यह आंकड़ा बढ़कर 24,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जो न केवल हमारी रक्षा उत्पादन क्षमता में आए अभूतपूर्व विस्तार का प्रमाण है, बल्कि भारतीय तकनीशियनों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की वर्षों की मेहनत, शोध, नवाचार और दक्षता का प्रत्यक्ष परिणाम भी है। इस तेज़ वृद्धि में सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल, आत्मनिर्भर भारत अभियान और निजी-सरकारी साझेदारी की सक्रिय भूमिका रही है, जिससे भारत वैश्विक रक्षा निर्यातकों की सूची में तेजी से ऊपर बढ़ रहा है।
भारत की नई तकनीकी तरक्की
दुनिया के तकनीकी मानचित्र पर भारत की भूमिका लगातार मजबूत हो रही है। भारतीय युवा आज ऐसे अत्याधुनिक हथियार, बम, मिसाइल और रक्षा उपकरण विकसित कर रहे हैं, जो पहले केवल विकसित देशों में बनते थे। इसमें डिजाइन, प्रोटोटाइप निर्माण, परीक्षण और बड़े पैमाने पर उत्पादन जैसे सभी चरणों में भारत की दक्षता बढ़ी है। इस तकनीकी प्रगति ने भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक मजबूत स्थान दिलाया है, साथ ही इसे रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर और नवाचार-प्रधान राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है। इसके परिणामस्वरूप, भारत न केवल अपनी सुरक्षा जरूरतों को पूरा कर रहा है, बल्कि अन्य देशों को भी आधुनिक रक्षा समाधान प्रदान कर रहा है।
रक्षा उद्योग में निजी क्षेत्र की भूमिका
भारत के रक्षा उद्योग में निजी कंपनियों की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। सरकार की नीतियों और प्रोत्साहनों, जैसे कि आसान लाइसेंस प्रक्रिया, कर रियायतें और विदेशी निवेश के लिए खुले अवसर, ने छोटे और बड़े उद्यमों को इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रेरित किया है। इससे न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ी है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए हैं। इसके साथ ही, प्रतिस्पर्धा के माहौल ने नवाचार और गुणवत्ता में सुधार को भी बढ़ावा दिया है, जिससे भारतीय रक्षा उत्पादों की वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ रही है।
अनुसंधान और विकास में निवेश
रक्षा और तकनीक में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अनुसंधान और विकास (R&D) पर निवेश बढ़ाना आवश्यक है। इसमें आधुनिक प्रयोगशालाओं की स्थापना, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के प्रशिक्षण कार्यक्रम, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है। भारत ने हाल के वर्षों में अपने अनुसंधान बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे न केवल नई तकनीकों और उत्पादों का विकास संभव हुआ है, बल्कि मौजूदा तकनीकों का उन्नयन और अधिक किफायती व प्रभावी समाधान भी तैयार हुए हैं। यह निवेश देश को भविष्य की रक्षा आवश्यकताओं के लिए तैयार करता है और वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा में मजबूत स्थिति दिलाता है।
वैश्विक साझेदारियां और समझौते
भारत ने कई देशों के साथ रक्षा और तकनीकी सहयोग के समझौते किए हैं। इन साझेदारियों से न केवल तकनीक का आदान-प्रदान होता है, बल्कि उन्नत अनुसंधान, संयुक्त उत्पादन परियोजनाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अवसर भी बढ़ते हैं। इन सहयोगों से अंतरराष्ट्रीय संबंध और विश्वास मजबूत होते हैं, जिससे भारत की वैश्विक छवि और रणनीतिक स्थिति और अधिक सुदृढ़ होती है। इसके साथ ही, ये समझौते भारत को नवीनतम रक्षा तकनीकों तक पहुंच, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भागीदारी और नए बाजारों में प्रवेश का अवसर भी प्रदान करते हैं।
स्वदेशी उत्पादन का आर्थिक प्रभाव
स्वदेशी उत्पादन से न केवल रक्षा क्षेत्र आत्मनिर्भर बनता है, बल्कि इसका देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा और सकारात्मक असर पड़ता है। इससे विदेशी मुद्रा की बचत होती है, निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि होती है और घरेलू उद्योग को मजबूती मिलती है। साथ ही, स्थानीय उद्योगों और लघु-मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और तकनीकी ज्ञान का स्तर बढ़ता है। स्वदेशी उत्पादन से जुड़े आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क भी मजबूत होते हैं, जो दीर्घकाल में देश की आर्थिक स्थिरता और औद्योगिक आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करते हैं।
दुनिया में भारत का बढ़ता असर
भारत ने हमेशा शांति और सहयोग का पक्ष लिया है, लेकिन अगर कोई देश या ताकत भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देता है, तो देश ने स्पष्ट कर दिया है कि वह मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। यह क्षमता केवल सैन्य बल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कूटनीतिक दबाव, आर्थिक उपाय और अंतरराष्ट्रीय समर्थन का इस्तेमाल भी शामिल है। हाल के सैन्य अभियानों और सीमावर्ती कार्रवाइयों ने यह संदेश स्पष्ट रूप से दुनिया तक पहुंचाया है कि भारत उकसावे का जवाब दृढ़ता, दूरदर्शिता और रणनीतिक योजना के साथ देता है। इन अभियानों ने यह भी साबित किया है कि भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम है, बल्कि अपने नागरिकों की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।
वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका
भारत न केवल रक्षा और तकनीक में, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। यह मजबूती भारत की सक्रिय विदेश नीति, बहुपक्षीय मंचों पर भागीदारी और वैश्विक मुद्दों पर संतुलित रुख अपनाने का परिणाम है। विभिन्न देशों के साथ रक्षा सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास, तकनीकी समझौते और आर्थिक साझेदारियां भारत की छवि को एक भरोसेमंद और जिम्मेदार वैश्विक साझेदार के रूप में स्थापित कर रही हैं। इसके अलावा, मानवीय सहायता, आपदा राहत कार्य और शांति मिशनों में भारत की सक्रिय भागीदारी ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी साख को और ऊंचा किया है।
निष्कर्ष
भारत की प्रगति केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस आत्मविश्वास और संकल्प की कहानी है, जो देश के हर नागरिक में झलकता है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, तकनीकी नवाचार और निर्यात में वृद्धि भारत को उस मुकाम पर ले जा रही है, जहां से कोई भी ताकत उसे विश्व शक्ति बनने से रोक नहीं सकती। आने वाले वर्षों में भारत का कद और बढ़ेगा और यह देश वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास में अहम योगदान देता रहेगा।