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IIT कानपुर का अनोखा प्रयास: कैसे पुरानी सैटेलाइट तस्वीरों से बदलेगी गंगा की किस्मत?

On: August 20, 2025 7:35 PM
Illustration of Ganga river flowing with mountains and forest
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भारत में गंगा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि आस्था, संस्कृति और जीवन का आधार मानी जाती है। करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ी गंगा आज प्रदूषण, अतिक्रमण और असंतुलित विकास की वजह से गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के साथ मिलकर गंगा की सेहत सुधारने का एक अनोखा प्रयास शुरू किया है। यह प्रयास बेहद खास है क्योंकि इसमें 1965 की पुरानी सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि नदी के बदलावों को समझा जा सके और उसके प्राकृतिक बहाव को वापस लाने के उपाय किए जा सकें।

गंगा और उसकी अहमियत

गंगा नदी भारत के उत्तर से पूर्व तक लगभग 2500 किलोमीटर का सफर तय करती है। यह सिर्फ पीने के पानी और सिंचाई का स्रोत नहीं है बल्कि इसके किनारों पर बसे शहरों की अर्थव्यवस्था, खेती-बाड़ी और धार्मिक गतिविधियाँ भी इसी पर निर्भर हैं। गंगा का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व इतना गहरा है कि इसे ‘राष्ट्रीय नदी’ का दर्जा भी प्राप्त है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में गंगा की हालत लगातार बिगड़ती चली गई है।

गंगा की वर्तमान चुनौतियाँ

आज गंगा कई तरह की समस्याओं से जूझ रही है। इनमें प्रमुख हैं:

  1. प्रदूषण – उद्योगों से निकलने वाला कचरा, सीवेज और प्लास्टिक का कचरा गंगा को प्रदूषित कर रहा है।
  2. अतिक्रमण और शहरीकरण – नदी के किनारों पर तेजी से फैलते शहरों ने गंगा की चौड़ाई और प्राकृतिक बहाव को प्रभावित किया है।
  3. बांध और तटबंध – गंगा के रास्ते में बने बांधों और तटबंधों ने पानी के प्राकृतिक प्रवाह को रोक दिया है।
  4. खेती का दबाव – नदी के किनारे की जमीन पर बढ़ती खेती ने गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाया है।

इन सभी कारणों ने गंगा की सेहत पर गहरा असर डाला है और अब उसे बचाने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी समाधान ढूँढना बेहद जरूरी हो गया है।

IIT कानपुर और NMCG की पहल

IIT कानपुर और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने मिलकर गंगा को फिर से जीवन देने की दिशा में एक नई शुरुआत की है। इस प्रोजेक्ट की सबसे खास बात यह है कि इसमें 1965 में अमेरिका की ‘कोरोना’ सैटेलाइट द्वारा ली गई पुरानी तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन तस्वीरों को हाल की 2018-19 की सैटेलाइट तस्वीरों के साथ मिलाकर यह समझने की कोशिश की जा रही है कि पिछले 50 सालों में गंगा के बहाव, किनारों और आसपास की जमीन में क्या बदलाव आए हैं।

पुरानी और नई तस्वीरों का महत्व

1965 की सैटेलाइट तस्वीरें गंगा की उस स्थिति को दर्शाती हैं जब नदी अपेक्षाकृत ज्यादा साफ और प्राकृतिक बहाव के साथ बह रही थी। वहीं, 2018-19 की तस्वीरें दिखाती हैं कि किस तरह शहरीकरण, औद्योगिकरण और खेती ने गंगा की बनावट को बदल दिया है। इन दोनों दौरों की तुलना से वैज्ञानिक यह जान पाएंगे कि कहाँ-कहाँ गंगा के बहाव को रोका गया, किन जगहों पर नदी की चौड़ाई कम हुई और किन इलाकों में अतिक्रमण बढ़ा।

वेब-जीआईएस सिस्टम और गंगा ज्ञान केंद्र

इस रिसर्च से प्राप्त डेटा को एक वेब-जीआईएस सिस्टम में डाला जाएगा ताकि गंगा से जुड़े सभी बदलावों को डिजिटल रूप से रिकॉर्ड किया जा सके। इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट को ‘गंगा ज्ञान केंद्र’ का हिस्सा भी बनाया जाएगा। यहाँ गंगा से जुड़ी सभी जानकारियाँ और रिसर्च एक जगह इकट्ठी होंगी, जिनका इस्तेमाल नीति-निर्माण और प्रबंधन में किया जा सकेगा।

गूगल अर्थ और डिजिटल डिस्प्ले पर जानकारी

इस प्रोजेक्ट का एक और अहम पहलू यह है कि इसमें इकट्ठा किए गए डेटा को गूगल अर्थ इंजन और इंटरैक्टिव डिजिटल डिस्प्ले पर भी उपलब्ध कराया जाएगा। इससे हरिद्वार, बिजनौर, नरोरा, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, पटना, भागलपुर और फरक्का जैसे शहरों में गंगा से जुड़े बदलावों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा। यह जानकारी स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों के लिए बेहद मददगार साबित होगी।

गंगा को प्राकृतिक बहाव लौटाने की योजना

इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि गंगा का प्राकृतिक बहाव कहाँ-कहाँ बाधित हुआ है और किस तरह इन रुकावटों को दूर किया जा सकता है। वैज्ञानिक यह भी अध्ययन कर रहे हैं कि किन जगहों पर जमीन का सही उपयोग करके नदी की सेहत में सुधार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, नदी के किनारे के अतिक्रमण को हटाना, प्रदूषण रोकना और खेती-बाड़ी में संतुलन बनाना गंगा की बहाली में मदद करेगा।

सरकार और वैज्ञानिकों की उम्मीदें

सरकार और वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिसर्च के आधार पर गंगा को बचाने के लिए ठोस योजनाएँ बन सकेंगी। साथ ही, यह प्रोजेक्ट न सिर्फ गंगा बल्कि अन्य नदियों के लिए भी एक मॉडल का काम करेगा। इससे यह सीखने को मिलेगा कि कैसे तकनीकी साधनों और पुराने डेटा का उपयोग करके किसी नदी की सेहत सुधारी जा सकती है।

निष्कर्ष

गंगा नदी को बचाना सिर्फ पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह करोड़ों भारतीयों के जीवन और आस्था से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है। IIT कानपुर और NMCG की यह पहल गंगा को उसके प्राकृतिक बहाव और स्वच्छता लौटाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। पुरानी और नई सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर तैयार की जा रही यह रिसर्च भविष्य की नीतियों और प्रोजेक्ट्स के लिए मजबूत आधार बनेगी। यदि यह प्रयास सफल होता है, तो गंगा फिर से स्वच्छ और जीवनदायिनी बन सकती है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर बनी रहेगी।

Prince Kumar

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